कल्पना
कल्पना- कल्पना गत अनुभवों से सम्बन्धित होती है। इसमें हमेशा नवीनता का तत्व पाया जाता है। बालक को कल्पना में यह यह अनुभव होता है कि कल्पना से सम्बन्धित अनुभव नवीन है। कल्पना को परिभाषित करते हुए कहा जा सकता है कि कल्पना पूर्व प्रत्यक्षीकृत अनुभवों पर आधारित वह प्रक्रिया है जो रचनात्मक होती है, परन्तु आवश्यक नहीं है कि वह सृजनात्मक भी हो।
बालक जब पुनः स्मरण और कल्पना करना सीख लेता है तब उसका सामाजिक सम्पर्क अधिक बढ़ जाता है। इस योग्यता के प्राप्त होते ही बालक उन वस्तुओं के सम्बन्ध में भी विचार करने लग जाता है जो उसके सामने नहीं होती है। कल्पना का महत्व बालक की विभिन्न विकासात्मक प्रक्रियाओं में है। बालक में अनेक क्रियात्मक कौशलों का विकास उसकी कल्पना पर आधारित होता है। परिभाषाएँ:-
- रायबर्न के अनुसार- ‘‘कल्पना वह शक्ति है जिसके द्वारा हम अपनी प्रतिभाओं का नये आकार से प्रयोग करते हैं। वह हमको अपने पूर्ण अनुभव को किसी ऐसी वस्तु का निर्माण करने में सहायता देती है, जो पहले कभी नहीं थी।‘‘
- मैक्डूगल के शब्दों में –“कल्पना दूरस्थ वस्तुओं के सम्बन्ध का चिन्तन है।“
Comments
Post a Comment