रुचि (Interest)

सामान्यतः रुचि का तात्पर्य हमारी पसन्द से होता है। जिस वस्तु में हमारी रुचि होती है, उसमें हमारा ध्यान स्वाभाविक रूप से केन्द्रित हो जाता हैं। यह हमारे मानसिक अनुभवों से सम्बन्ध रखने वाला एक प्रेरक है। मैक्डूगल के अनुसार ‘‘रुचि दिया हुआ अवधान है और अवधान रुचि का क्रियात्मक रूप है।‘‘ क्रो एण्ड क्रो के अनुसार ‘‘रुचि एक प्रेरक शक्ति है, जो हमें किसी व्यक्ति, वस्तु या क्रिया के प्रति ध्यान देने के लिए प्रेरित करती है।‘‘ रास के अनुसार ‘‘जो वस्तु हमारे साथ अत्यधिक सम्बन्धित होती है, उसके प्रति हमारी रुचि होती है।‘‘ इस प्रकार उपर्युक्त अर्थ एवं परिभाषा से निम्नलिखित तथ्य सामने आते है-
  • रूचि मनुष्य की मानसिक संरचना है |
  • यह जन्मजात एवं अर्जित दोनों होती है |
  • मनुष्यों में रुचियों का विकास जीवन पर्यन्त चलता है |
  • रूचि सीखने में आने वाली समस्याओ को दूर करती है | जिससे थकावट का अनुभव नहीं होता है |
  • हमारी रुचियों का सम्बन्ध हमारी आवश्यकताओं , लक्ष्यों तथा इच्छाओं से होता है |
रुचियों के प्रकार (1) जन्मजात रुचियाँ (Inform Interest) (2) अर्जित रुचियाँ (Acquired Interest)
  1. जो रुचि अपने आप ही उत्पन्न होती है और जिसका आधार मनुष्य की जन्मजात प्रवृत्तियाँ रहती हैं, उसे जन्मजात या नैसर्गिक रुचि कहते हैं जैसे -खाने में रुचि, संग्रह करने में रुचि आदि।
  2. वातावरण के प्रभाव से स्वतः या इच्छा द्वारा प्राप्त रुचि अर्जित रुचि कहलाती है। जैसे-पढ़ने, गाने या अभिनय करने में रुचि।
  3. बच्चों की रुचि परीक्षण -बच्चों की रुचि का पता लगाने के लिए विभिन्न रुचि परीक्षणों का निर्माण किया जाता है जिसमें उनके विभिन्न रुचियों से सम्बन्धित पद (Item) सम्मिलित होते हैं, जिसका उत्तर उन बच्चों को ‘हाँ‘ या ‘न‘ के रूप में देना होता है। उनके द्वारा दिए गए उत्तरों की गणना करके हम उन बच्चों की विभिन्न रुचियों का पता लगाते हैं।
शिक्षा के क्षेत्र में रुचि परीक्षणों का उपयोग मुख्यतः निम्नलिखित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किया जाता है -
  • छात्रों की रुचियों का पता लगाने के लिए।
  • छात्रों की वैयक्तिक भिन्नता का पता लगाने के लिए।
  • छात्रों की रुचियों की तुलनात्मक जानकारी के लिए।
  • छात्रों का वर्गीकरण करने के लिए।
  • छात्रों के व्यक्तित्व का मापन करने के लिए।
  • छात्रों को शैक्षिक निर्देशन देने के लिए।
  • छात्रों को व्यावसायिक निर्देशन देने के लिए।
  छात्रों की रुचियों में उनकी आयु, परिस्थितियों, अनुभवों एवं आवश्यकताओं के आधार पर परिवर्तन होता रहता है, इसलिए किसी समय विशेष पर किसी रुचि परीक्षण द्वारा प्राप्त परिणाम सदैव लागू नहीं किया जा सकता। बच्चो में रुचि उत्पन्न करने की विधियाँ तथा अधिगम में उनका महत्व   बच्चों को पढ़ाए जाने वाले विषयों एवं सिखाए जाने वाली क्रियाओं में रुचि उत्पन्न करने के लिए प्रशिक्षु को कुछ महत्वपूर्ण बातों पर ध्यान देना आवश्यक है-
  • कोई भी विषय पढ़ाते समय बालकों के दृष्टिकोण से परिचित होना आवश्यक है।
  • बच्चों की कठिनाई का निवारण सरलता से करने का प्रयत्न करें।
  • ध्यान व रुचि केन्द्रित न होने पर किसी अन्य मनोरंजन खेल द्वारा ध्यान आकर्षित करें ।
  • जहाँ तक सम्भव हो विषय पढ़ाते समय स्थूल दृश्य-श्रव्य साधनों का प्रयोग करें इससे पाठ रोचक बनता है।
  • उपयुक्तम शिक्षण विधियों का प्रयोग करना चाहिए। सामान्यतः शिशुओं के लिए खेल विधि, बालाकों के लिए कार्यविधि, किशोरों के लिए समस्या समाधान विधि और युवकों के लिए व्याख्यान, तर्क एवं वाद-विवाद विधियाँ अच्छी रहती है।
  • प्रत्येक पाठ का प्रयोजन होना चाहिए। जब बच्चे पाठ की उपयोगिता समझ जाते हैं तब वे अपनी इच्छा से कार्य करने में तत्पर होते हैं।
  • प्रशिक्षु/अध्यापक की सफलता का मूलाधार बालक की रुचि ही है। रुचि पैदा होने पर उद्देश्य की पूर्ति स्वयं हो जाती है।
  • शिक्षण के साथ-साथ बच्चें को उनके परिवेश एवं नई-नई चीजों की भी जानकारी दें।
  • रुचि के महत्व के साथ उसके विगत अनुभवों का प्रसंग देना चाहिए।
  • कठिन और नीरस विषय को सरल एवं रुचिकर ढंग से प्रस्तुत करें।
  • कक्षा में बच्चों से अधिक से अधिक सहभागिता करायें।
  • रुचि जागृत करने व ज्ञान वृद्धि के लिए बच्चों को भ्रमण पर भी ले जाए।
  • बच्चों की आयु के अनुसार रुचिकर कार्य कराने से शिक्षण प्रभावी बनता है।
  • थकान होने पर बच्चे को पूर्ण आराम देना चाहिए।
  • बच्चों को समय-समय पर पुरस्कारों एवं प्रमाण पत्रों द्वारा प्रोत्साहित करें।
  • शिक्षक को स्वयं उत्साहित एवं फुर्तीला होना चाहिए, जिससे बच्चों की शिक्षण में रुचि बनी रहे।
  • विद्यालय तथा कक्षा का वातावरण भी बच्चों की कक्षा कार्य में रुचि बनाए रखने में सहायक होती है।
  • शिक्षक/प्रशिक्षु का व्यवहार भी बच्चों के प्रति कठोर व दण्डनीय के स्थान पर प्रेम, सहानुभूति और सहयोगपूर्ण होना चाहिए। इससे बच्चे स्वयं रुचि से केाई कार्य करते हैं।
इस प्रकार उपरोक्त विधियों व तरीकों का प्रयोग करते हुए प्रशिक्षु अपनी शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को रुचिकर बना सकते है। ध्यान एवं रुचि का सम्बन्ध (Relationship between Attention and Interest)  ध्यान एवं रुचि में घनिष्ठ संबंध है। व्यक्ति की जिसमें रुचि होती है उसमें उसका ध्यान भी केन्द्रित होता है। जिस वस्तु पर हम ध्यान देने लगते हैं, उसमें हमारी रुचि उत्पन्न होने लगती है। मैक्डूगल के अनुसार ‘‘रुचि गुप्त ध्यान है-और ध्यान सक्रिय रुचि है।‘‘ इस प्रकार मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि किसी विषय या वस्तु पर ध्यान केन्द्रित करने के लिए उसमें रुचि उत्पन्न करना आवश्यक है।   इस प्रकार रुचि तथा ध्यान के सम्बन्ध में तीन प्रमुख मत प्रचलित है- 1. ध्यान रुचि पर आधारित है  2. रुचि ध्यान पर आधारित है 3. ये दोनो एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। पुनरावृत्ति बिन्दु 
  • सीखने की प्रक्रिया में ध्यान के साथ-साथ रुचि भी महत्वपूर्ण है।
  • हमारा ध्यान उसी पर केन्द्रित होगा जिसमें हमारी रुचि होगी।
  • रुचि वह प्रेरक शक्ति है जो हमें किसी व्यक्ति, वस्तु या क्रिया के प्रति ध्यान देने के लिए प्रेरित करती है।
  • रुचि दो प्रकार की होती है - जन्मजात रुचि 2.अर्जित रुचि।
  • रुचि और ध्यान का घनिष्ठ सम्बन्ध हैं।
  • शिक्षा में रुचि एवं ध्यान दोनों की उपयोगिता है।
  • बच्चों की रुचि का उपयेाग करके हम उन्हें उचित शिक्षा प्रदान कर सकते हैं।
 
मूल्यांकन
बहुविकल्पीय दिये गये उत्तरों में सही विकल्प पर सही  ( ) का चिन्ह लगाइए- (क) ध्यान के प्रकार होते हैं- (अ) 2 (दो) (ब) 3 (तीने) (स) 4 (चार) (द) 5 (पाँच) (ख) रुचि का सबसे अधिक सम्बन्ध है- (अ) संवेग से  (ब) ध्यान से (स) बुद्धि से (द) इनमें से किसी से नहीं। अतिलघु उत्तरीय -
  1. ध्यान को प्रभावित करने वाले कोई दो वाह्य कारक लिखिए।
  2. रुचि के प्रकार कौन-कौन से है ?
  लघु उत्तरीय 
  1. रुचि और ध्यान में क्या सम्बन्ध हैं ?
  2. शिक्षा के क्षेत्र में रुचि का महत्व अपने शब्दों में लिखिए।
  दीर्घ उत्तरीय 
  1. आप पढ़ाए जाने वाले विषय अथवा सिखाए जाने वाली क्रियाओं में बच्चों की रुचि एवं अवधान कैसे विकसित करेगे ?

Comments