स्मृति (Memory)

अर्थ प्रायः देखा जाता है कि जब कोई बच्चा किसी बात को आसानी से सीख जाता है, याद रखता है और पुनःस्मरण कर लेता है, तो अक्सर हम सभी कहते है कि अमुक बच्चे की स्मरण शक्ति अच्छी है। इस प्रकार अच्छी स्मरण शक्ति से हमारा अर्थ सीखना, याद करना तथा पुनःस्मरण है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार अचेतन मन में संचित अनुभवों को चेतन मन में लाने की क्रिया को ही स्मृति कहते हैं। जैसे- जब कोई घटना व्यक्ति देखता है तो यह घटना अपने पूर्ण अथवा अंशरूप में उसके अचेतन मन में संचित हो जाती है। किसी कारणवश जब व्यक्ति को इस घटना की याद आती है या उसे याद दिलाई जाती है तो उक्त घटना पुनः उसी रूप में उसके चेतन मन में आ जाती है। वुडवर्थ के अनुसार- ‘‘स्मृति, सीखी हुई वस्तु का सीधा उपयोग है।’’ हिलगार्ड के अनुसार- ‘‘स्मृति, वह मानसिक प्रक्रिया है जिसमें अतीत के सीखे गए ज्ञान, अनुभव या कौशल का पुनः स्मरण किया जाता है। स्टाउट के अनुसार- ‘‘स्मृति, एक ऐसी आदर्श पुनरावृत्ति है, जिसमें अतीत के अनुभव उसी ढंग और क्रम में जागृत होते है, जिस क्रम में वह पूर्व में उपस्थित थे।’’ उपर्युक्त अर्थ एवं परिभाषाओं का यदि हम विश्लेषण करें तो निम्नलिखित बातें उभर कर हमारे सामने आती हैं-
  • स्थायी पूर्व अनुभव स्मृति के स्थायित्व को शक्तिशाली बनाते हैं।
  • स्मृति का कार्य अचतेन मन में एकत्रित ज्ञान को चेतन मन में लाना हातेा है।
  • अधिगम के द्वारा स्थापित छाप ही स्मृति शक्ति के आधार बनते हैं।
ध्यातव्य बिन्दु- प्रशिक्षु हेतु
  • अच्छी स्मरण के लिए बच्चों के प्रति समझ
  • बच्चों की अपनी दुनिया होती है, उनकी दुनिया में उतरकर उनको देखे, समझे एवं परखें।
  • बच्चे जिज्ञासु होते हैं और निरन्तर कुछ न कुछ सीखना चाहते हैं। उन्हें निर्भय परिवेश देकर स्वतंत्र रूप से कार्य करने का मौका दें।
  • बच्चों की शरारत को नकारात्मक नजरिए से न देखे, और न ही अपनी सोच के अनुरूप उन्हें ढ़ालना चाहें। हकीकत में बच्चे शरारत नहीं बल्कि कुछ करके देखने, कुछ खोजने, कुछ समझने के उत्साह से भरे होते हैं।
इन्हें भी जानें स्मृति के प्रमुख चार सोपान होते हैं-
  • अधिगम
  • धारण
  • प्रत्यास्मरण
  • अभिज्ञान
उपयुक्तक चारों सोपान के बाद स्मृति अपनी पूर्ण अवस्था में पहुँचती है। स्मृति कि प्रकार व्यक्तिगत विभिन्नताओं के कारण सभी व्यक्ति की याद करने, धारण करने तथा पहचानने की क्षमता एक जैसी नहीं होती है। आधुनिक मनोवैज्ञानिकों ने स्मृति के निम्नलिखित प्रकार निश्चित किए है-  अल्पकालिक स्मृति अल्पकालीन स्मृति उम्र के साथ विकसित होती है। 13 से 17 वर्ष के मध्य इस प्रकार की स्मृति का विकास तेजी से होता हैं किसी तथ्य या सूचना को याद करके पुनः तुरन्त सुना देना तात्कालीक या अल्पकालीन स्मृति कहलाती है। जैसे छोटी कक्षाओं में शिक्षक बच्चों को पहाड़ा या पाठ याद करने को देते हैं और 10 मिनट बाद सुनते हैं। इसका उपयोग छात्रों में प्रोत्साहन वृद्धि हेतु किया जाता है। दीर्घकालीन स्मृति जब किसी तथ्य या अनुभव को लम्बे समय तक धारण किया जाता है तो उसे दीर्घ कालीन स्मृति कहते है। यह किसी घटना, सूचना या अनुभव का वह पुनः स्मरण है, जो सीख-लेने के पश्चात अनेक घण्टों, अनेक दिनों, अथवा मिनटों तक मस्तिष्क में धारण के रूप में संचित रहता है। इसका मूलभूत आधार अभ्यास है। इसी अभ्यास के आधार पर अल्पकालिक स्मृति को दीर्घ कालीन स्मृति में संचालित किया जाता है। इसके अतिरिक्त स्मृति के अन्य प्रकार भी है जो निम्नलिखित हैं-
  1. रटन्त स्मृति किसी तथ्य को बिना सोचे समझे याद कर लेना एवं आवश्यकता पड़ने पर ज्यो का त्यो प्रस्तुत कर देना रटन्त स्मृति कहलाती है। आज की शिक्षा पद्धति में बच्चों को रटन्त प्रणाली से दूर रखा जाता है।
  2. सक्रिय स्मृति- सक्रिय स्मृति में अधिगम सामग्री को बोल-बोल कर याद किया जाता है। अनुभवों को इच्छा पूर्वक प्रयास कर पुनः स्मरण करना एवं उसे सही ढंग से प्रस्तुत करना सक्रिया स्मृति है। छात्र इसी स्मृति के द्वारा परीक्षा भवन में प्रश्नों के उत्तर कमियों पर लिखते हैं।
  3. निष्क्रिय स्मृति जब पूर्व अनुभवों को बिना किसी प्रयास के पुनः स्मरण कर लेते हैं। तो उसे निष्क्रिय स्मृति कहते हैं। इससे व्यक्ति बिना बोले मन-मन में विषयवस्तु को दोहराता है। यह स्मृति उच्च स्तर कक्षा एवं प्रौढ़ों के लिए उपयुक्त होती है।
  4. तार्किक स्मृति किसी तथ्य को सोच समझकर तर्क के आधार पर याद करना एवं आवश्यकता होने पर उसे सुना देना तार्किक स्मृति कहलाती है।
  5. वास्तविक स्मृति जब हम याद की गई या सीखी गई बात को कमी भी नहीं भूलते हैं तो वह स्थायी या वास्तविक स्मृति कहलाती है। यह स्थिति परिपक्वावस्था में विकसित होती है। इसमें विषय को क्रमबद्ध रूप में धारण किया जाता है, जिससे पुनः स्मरण करने में आसानी होती है। शिक्षा के क्षेत्र में इस स्मृति को सर्वोत्तम माना जाता है।
स्मृति के प्रभावी कारण  अधिगम सामग्री की स्पष्टता, सरलता तथा सार्थकता भी स्मरण को महत्वपूर्ण ढंग से प्रभावति करती है। निरर्थक सामग्री की अपेक्षा सार्थक सामग्री बच्चे को जल्द याद हो जाती हैं।  इस प्रकार स्मृति को अनेक तत्व प्रभावित करते हैं जिसमें निम्नलिखित मुख्य हैं-
  1. शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य स्वस्थ बच्चों की अपेक्षा अस्वस्थ बच्चों की स्मृति कमजोर होती है। इस प्रकार जो बच्चे भय, चिन्ता एवं अन्य मानसिक विकारों से ग्रस्त होते हैं, उनकी स्मृति अच्छी नहीं होती है। इसके विपरीत यदि बच्चों में मानसिक ताजगी है, तत्परता है तो निश्चित रूप से स्मृति प्रक्रिया शीघ्र, सहज, स्थायी एवं सरल ढंग से होगी।
  2. प्रेरण अभिप्रेरित व्यक्ति जल्दी सीखते हैं एवं सीखी हुई सामग्री को लम्बे समय तक धारण करते हैं।
3 रूचि   जिस विषय वस्तु में बच्चों की रूचि होती है उसे वे जल्दी सीखता है। अरूचिकर वस्तुएँ विस्मृत होने लगती हैं। इसलिए कक्षा शिक्षण में रूचि पैदा करना आवश्यक है।
  1. सम्बद्धता वर्तमान से अतीत की घटनाओं को सम्बद्धित कर इतिहास की घटनाओं को सरलतापूर्वक बच्चों को स्मरण कराया जा सकता है। जैसे- अपने गाँव के किसी व्यक्ति को देखकर गाँव से समबन्धित अन्य बातें भी याद आ जाती है।
  2. स्मरण विधि बच्चे स्मरण करने के लिए जिस विधि का उपयोग करते हैं, उसका उसकी याद करने की प्रक्रिया पर असर पड़ता है।
  3. शिक्षक का व्यवहार शिक्षक का बच्चों के प्रति प्रेम एवं स्नेहपूर्ण व्यवहार बालक को याद करने में अनुकूल प्रभाव डालता है।
  4. उत्तम वातावरण शान्तिपूर्ण एवं स्वस्थ्य वातावरण अच्छी स्मृति के लिए सहायक होता है। इसके विपरीत वातावरण स्मृति पर विपरीत प्रभाव डालती है। इस कारण कक्षा शिक्षण रूचिपूर्ण एवं बालकेन्द्रित होने पर पठन-पाठन सरल हो जाता है तथा बच्चे भी सरलता से उसे समझ जाते हैं।
पुनरावृत्ति बिन्दु
  • अच्छी स्मरण शक्ति का अर्थ सीखना, याद करना तथा पुनः स्मरण है।
  • मनुष्य की स्मरण शक्ति अन्य प्राणियों की अपेक्षा उच्च होती है।
  • स्मृति दो प्रकार की होती है- अल्पकालीन 2. दीर्घ कालीन
  • स्मृति को प्रभावित करने वाले कारक है- रूचि, प्रेरणा, सम्बद्धता स्मरण विधि, शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य, शिक्षक का व्यवहार एवं उत्तम वातावरण।

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