पियाजे का सिद्धान्त (Theory of Piaget)

स्विस मनोवैज्ञानिक पियाजे का कहना है, कि जैसे-जैसे बच्चे की आयु बढ़ती है, उसका कार्य क्षेत्र बढ़ता जाता है। वैसे-वैसे उसकी बुद्धि का विकास भी होता जाता है। उन्होंने स्पष्ट किया, कि पहले बच्चा सरल प्रत्ययों के माध्यम से सीखता है। परन्तु जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता है। कठिन से कठिनतम प्रत्ययों को ग्रहण करने लगता है। हमरे लिए उपयुक्त वातावरण की आवश्यकता है। इन्होनें कहा, सीखना कोई यांत्रिक क्रिया नही है बल्कि एक बौद्धिक प्रक्रिया है, एक सम्प्रत्यय निर्माण की प्रक्रिया है। और यह सम्प्रत्यय निर्माण बालक की आयु के अनुसार होता रहता है। पियाजे ने अपने सिद्धान्त में निम्नलिखित पदों पर विशेष बल दिया है-
  • अनुकूलन (Adaptation)
  • साम्यधारणा (Equilibration)
  • संरक्षण (Conservation)
  • संज्ञानात्मक संरचना (cognitive structure)
  • मानसिक क्रिया (Mental Operation)
  • स्कीम्स (Schemes)
  • स्कीमा (Schema)
  • विकेन्द्रण (Decentering)
इन्होंने संज्ञानात्मक विकास को मुख्य रूप से चार कालों में विभाजित किया- (1) संवेदीपेशीय अवस्था 
  • सहज क्रियाओं की अवस्था
  • प्रमुख वृत्तीय अनुक्रियाओं की अवस्था
  • गौण वृत्तीय अनुक्रियाओं की अवस्था
  • गौण स्कीमेटा के समन्वय की अवस्था
  • तृतीय वृत्तीय अनुक्रियाओं की अवस्था
  • मानसिक संयोग द्वारा नये साधनों के खोज की अवस्था
  (2) प्राक्संक्रित्यामक अवस्था 
  • प्राक्सम्प्रत्यात्मक अवधि
  • अन्तदर्शी अवस्था
  (3) मूर्तसंक्रिया की अवस्था (4) औपचारिक संक्रिया की अवस्था   नोट : इन सभी का विवरण विभिन्न अवस्थाओ में संज्ञानात्मक विकास में दिया पियाजे के सीखने के सिद्धान्त की विशेषताएं (Characteristics of Piaget)
  • सीखना एक क्रमिक एवं आरोही प्रक्रिया है।
  • पियाजे के अनुसार सीखने का पर्यावरण और क्रिया मूल आवश्यकताएं हैं।
  • बालक के अमूर्त चिन्तन पर उसकी शिक्षा का प्रभाव पड़ता है। निम्नस्तर पर अमूर्त चिन्तन कम व उच्च शिक्षा स्तर पर अमूर्त चिन्तन अधिक होता है।
  • पियाजे के अनुसार औपचारिक संक्रिया अवस्था ;थ्वतउंस वचमतंजपवदंसे जंहमद्ध के बाद बालक की सम्पूर्ण बौद्धिक शक्ति का विकास हो जाता है और अपनी बौद्धिक क्षमताओं के प्रयोग से समस्या का समाधान क्रमबद्ध व तार्किक ढंग से कर सकता है।
  • पियाजे के अनुसार बच्चों में चिन्तन एवं खोज करने की शक्ति उसकी जैविक परिपक्वता, अनुभव एवं इन दोनों की अन्तर्किया पर निर्भर करता है।
  पियाजे के सिद्धान्त का शिक्षा में उपयोग (Implications of Piaget’s Theory in Education)
  • इस सिद्धान्त ने बालकों को स्वक्रिया द्वारा सीखने पर बल दिया।
  • पियाजे ने अनुकरण व खेल को महत्व दिया और शिक्षक को इन विधियों से पढ़़ाना चाहिये।
  • सीखने में प्रगति न करने वालों को दण्ड नही देना चाहिये।
  • पियाजे ने संज्ञानात्मक विकास के अनुसार विभिन्न श्रेणियों को विभाजित किया। उसी के अनुसार किसी भी आयु के लिए पाठ्यक्रम निर्माण करना चाहिये।
  • पियाजे ने बुद्धि का मापन उसके व्यावहारिक उपयोग (वातावरण के साथ अंतःक्रिया) की क्षमता के रूप में लिया जाता है। बुद्धि परीक्षण निर्माण में व्यावहारिक रूप में प्रयोग से सम्बन्धित क्रियाओं का उपयोग करना चाहिये।
  • पियाजे के सिद्धान्त के अनुसार चालक (Drives) और अभिप्रेरणा (Motivation) अधिगम एवं विकास के लिए आवश्यक है। अतः शिक्षक को शिक्षण अधिगम में इसका प्रयोग करना चाहिये।
  • पियाजे के अनुसार सीखना बालक के स्वयं और उसके पर्यावरण से अंतःक्रिया के फलस्वरूप होता है, अतः शिक्षकों एवं अभिभावकों को बालकों के लिए उचित मार्ग दर्शन करना चाहिये।
इस प्रकार पियाजे के सिद्धान्त का शिक्षा में बहुत महत्व है।

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